सदाबहार >> वरदान (उपन्यास) वरदान (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘वरदान’ दो प्रेमियों की कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले...
‘इन्द्र का बल!’
‘नहीं।’
‘सरस्वती की विद्या?’
‘नहीं।’
‘फिर क्या लेगी?’
‘संसार का सबसे उत्तम पदार्थ।’
‘वह क्या है?’
‘सपूत बेटा।’
‘जो कुल का नाम रोशन करे?’
‘नहीं।’
‘जो माता-पिता की सेवा करे?
‘नहीं।’
‘जो विद्वान और बलवान हो?’
‘नहीं।’
‘फिर सपूत बेटा किसे कहते हैं?’
‘जो अपने देश का उपकार करे।’
‘तेरी बुद्धि को धन्य है! जा, तेरी इच्छा पूरी होगी।’
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